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Review of my fiction novel titled "The Colourful Drama of Emotions"

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REVIEW OF THE BOOK “THE COLOURFUL DRAMA OF EMOTIONS” - Reviewed by Shri Manoj Singh . “Thought-provoking, brilliant, distinctive, and beautifully written novel”. A seminal piece of great story telling. In a unique and interesting way, the author has personified emotions and has presented us a love story between HUMOUR, [represented by Smile] and HESITATION, [represented by Calmness]. Through acronyms like GODs, represented by good people like PEACE, LOVE, TRUST, HAPPINESS, JOY, HOPE, INTEGRITY, RIGHTEOUSNESS, EMPATHY etc and DOGs represented by deadly people like ANGER, JEALOUSLY, SELFISHNESS, VIOLENCE,CRUELTY etc, the author, raises various contemporary issues plaguing our society and prescribes solutions to it. Each characters in the story has been perfectly described, plotted, well-researched. Proverbs used are so innovative and realistic, it touches the heart. Novel highlights the importance of PEACE in the society whose position has been captured by DECEIT who in collaborati

The Statistical ‘Pyaar’

The Statistical ‘Pyaar’ Rishabh was a random boy of our neighbourhood who right from his teenage was attracted towards a random girl, Lisa of the same locality. People often felt Rishabh’s behavior was far from normality and Lisa perhaps could not be fit into any parametric distribution. After days of day dreaming and admiring the beauty of Lisa, one day Rishabh decided to express his love for her, but Rishabh was a true statistician. He wanted a conclusive and a definite answer for his proposal and so before proposing, he decided to check the results based on a random sample of events. Only those events were selected where only 2 independent entities Lisa and Rishabh were present excluding the entire outer world. This resulted in formulation of two hypotheses: H0: Lisa did not love Rishabh H1: Lisa loved Rishabh   The parameters for love chosen by Rishabh were the following: (i)                 Amount of time spent on telephone by her with him (ii)               Nu

Feminism & Patriarchy Vs Equality

Feminism & Patriarchy Vs Equality “Get up fast Shefali. The boy’s family can arrive any moment,” Shefali’s mom shouted in an irritating tone. “So? Let them wait,” was the immediate reply of Shefali. Shefali was in her early thirties. She was an independent, good looking and charming lady. She was well earning and was strictly against the male chauvinistic norms of the society. “Shut –up! Don’t forget that you are a girl,” Shefali’s mother uttered in a casual tone. This was the favourite debate topic for Shefali. She started with her full-rehearsed speech: “Why do you always make me realize that I am a girl? I know, I am a girl and I am proud to be a girl. Why do you have to differentiate between a girl and a boy? I have all the qualities of a boy, in fact in some aspects, more than boys, then why do you give them the undue advantage? This type of thinking is damaging the society. Boys think, they are superior to us and that becomes the root cause behind all the

धर्म-जात या मानवता ?

धर्म - जात या मानवता ? ये न पूछो मुझसे, मेरे मन में क्या चल रहा है | जाति धर्म की लड़ाई से, मेरा सीना जल रहा है || मरने वालों के जात-धर्म पर, होती है घंटो चर्चा रेप हुए महिलाओं का, धर्म भी बनता है मुद्दा | मानवता खंडित हुई, धर्मों के जहरीले तलवार से धर्म भारी पड़ रहा, अनमोल इंसानी जानों पे | किस धर्म के पन्नो में, सिखाया गया है नफरत और लहू बहा कर, कैसे मिल सकती है जन्नत? ये न पूछो मुझसे, मेरे मन में क्या चल रहा है | जाति धर्म की लड़ाई से, मेरा सीना जल रहा है || क्या वास्तव में दर्शाता है ये, हमारे मज़हब के प्रति प्यार या हमारे संकुचित मानसिकता का, है ये विकृत आकार | जात धर्म की अभद्र परिभाषा में, कब तक उलझे रहेंगे हम भव्य भारत की संस्कृति का, कब तक उपहास करेंगे हम | दुनिया कर आई चाँद और मंगल तक का सफर, हम मगर उलझ कर रह गए जात-धर्म में बँधकर | इस तरह कभी सोचा, क्या सीखेंगे आनेवाली पीढ़ियाँ रहकर उस देश में, जहाँ हो धर्म-जात के हज़ारों बेड़ियाँ | ये न पूछो मुझसे, मेरे मन में क्या चल रहा है | जाति धर्म की लड़ाई से, मेरा सीना जल रहा है ||

स्ट्रेस

स्ट्रेस स्ट्रेस तू जा जा रे , मुझे न तू और सता रे। नींद भी छीना तूने , चैन भी छीना तूने। अब तो बस कर रे , मुझे अब बक्श दे रे॥ रहूँ मैं परेशान हर एक पल , उलझन के चंगुलों में। उपाय मिले ये गारंटी नहीं , पर BP है मेरा ऊँचाइयों में ॥ ऐ स्ट्रेस तुझे क्या पता ,  कीमत , तेरी दोस्ती निभाने में। मुझे मिला डायबिटीज और अन्य बीमारियां फ़ोकट में ॥ स्ट्रेस तू जा जा रे , मुझे और न तू सता रे। कैसे अलग करूँ इस स्ट्रेस को , मैं अपने आप से ? चिपका है इस तरह , मेरी रूह मेरी आत्मा से ॥ सोते जागते दिमाग में , इसी ने कर रखा  एकमात्र घर है। ब्यूटीशियंस के अनुसार , यही मेरी झुर्रियों का कारण है॥ न लो कोई स्ट्रेस व्रेस- यह बताया मुझे सब ने। पर फार्मूला क्या है - ये ना बताया किसी ने॥ स्ट्रेस तू जा जा रे , मुझे और न तू सता रे । किसी ने कहा योग करो , किसी ने कहा मोह त्यागो ॥ और किसी ने कहा , अपने आप को ढूंढो । सारा फार्मूला हुआ विफल , इस अनोखे स्ट्रेस के आगे । ख़ुद को लाचार पाती हूँ मैं , अपनी परेशानियों के आगे ॥ स्ट्रेस तू जा जा रे , मुझे न तू और सता रे । ज़

मेरा ईमान महिलाओं का " सम्मान "

मेरा ईमान महिलाओं का " सम्मान " महिला ही रहने दो मुझे देवी न बनाओ । स्त्री को स्त्री ही रहने दो ईश्वर न बनाओ ॥ देवी बनके मुझे न शामिल करो महानों में । मैं भी हूँ बस एक शक्श आम मनुष्यों में ॥ मुझसे भी हो सकती है गलती कभी कभी । क्योंकि मैं भी हूँ हाड़ मांस की ही बस पुतली ॥ मेरी भी चाह मिले मुझे बस उतनी ही जगह । जितनी मिलती है पुरुषों को बिना किसी वजह ॥ क्या इस छोटी सी बात को समझने में है इतनी जटिलता ? या मिल ही नहीं सकती हमारी बातों को कभी भी महत्ता ? भगवान बनाने के पीछे रचा गया है एक ख़ास षड़यंत्र । इसमें छुपा है समाज का हमे आंकने - मापने का मंत्र ॥ क्या देवी बनने की कीमत हम से ही लिया जायेगा ? क्या यूहीं साजिश कर हमारे ही परों को काटा जायेगा ? देवी बनाके डाल दिया हम पर सम्मान का बोझा । लाज शर्म में सिमटी , सवाल उभरा बस एक मेरा , अगर पुत्र है परिवार का धन फिर इज़्ज़त की बोरी हम पर क्यों