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मेरा ईमान महिलाओं का " सम्मान "

मेरा ईमान महिलाओं का " सम्मान " महिला ही रहने दो मुझे देवी न बनाओ । स्त्री को स्त्री ही रहने दो ईश्वर न बनाओ ॥ देवी बनके मुझे न शामिल करो महानों में । मैं भी हूँ बस एक शक्श आम मनुष्यों में ॥ मुझसे भी हो सकती है गलती कभी कभी । क्योंकि मैं भी हूँ हाड़ मांस की ही बस पुतली ॥ मेरी भी चाह मिले मुझे बस उतनी ही जगह । जितनी मिलती है पुरुषों को बिना किसी वजह ॥ क्या इस छोटी सी बात को समझने में है इतनी जटिलता ? या मिल ही नहीं सकती हमारी बातों को कभी भी महत्ता ? भगवान बनाने के पीछे रचा गया है एक ख़ास षड़यंत्र । इसमें छुपा है समाज का हमे आंकने - मापने का मंत्र ॥ क्या देवी बनने की कीमत हम से ही लिया जायेगा ? क्या यूहीं साजिश कर हमारे ही परों को काटा जायेगा ? देवी बनाके डाल दिया हम पर सम्मान का बोझा । लाज शर्म में सिमटी , सवाल उभरा बस एक मेरा , अगर पुत्र है परिवार का धन फिर इज़्ज़त की बोरी हम पर क्यों